राजस्थानी कविता कोष
Rajasthani Kavita Kosh
कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।
राम चालीसा
कोशल्या का लाड़ला ,केवावे जगदीश ।
किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीस
हुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।
चारो पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।।
शब्दार्थ -लाड़ला-परम प्रिय, केवावे-कहलाते है ,जग- संसार,मोकळी-अपार,रोज-प्रतिदिन,नमावां-नमन करते, सीस-मस्तकभावार्थः-किरपा करजो मोकळी ,रोज नमावां सीस
हुणजो माता जानकी ,दया करे रघुवीर ।
चारो पुरसारथ मले, ओर मले मावीर ।।
कौशल्या माता के अनन्य , प्रिय पुत्र प्रभु श्रीराम को यह सारा संसार जगदीश नाम से पुकारता है । अमृत ’वाणी’ कविराज कर जोड़ निवेदन करना चाहते हैं कि हे रघुकुल भूशण ! यद्यपि हम आपकी कोई अतिविशिष्ट सेवा नहीं कर पा रहे हैं तथापि हमारी यह मंगलाकांक्षा है कि हम पर आपकी अनन्त कृपा-वृश्टि होती रहे । इसके लिए हम प्रतिदिन प्रातः उठकर आपको केवल प्रणाम ही कर पा रहे हैं।
हे माता जानकी ! आप हमारी प्रार्थना सुन कर शीघ्र ही प्रभु श्रीराम तक पहुओंचावे, कि प्रभु हम पर विशिष्ट दया करते हुए सभी राम-भक्तों को चारों पुरूशार्थों--धर्म , अर्थ , कर्म , मोक्ष- की प्राप्ति एवं राम-भक्त हनुमान के चरण-कमलों की भक्ति प्रदान करें।
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