राजस्थानी कविता कोष
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हार्या केड़े
हार्या केड़े देखजो , कठे-कठे ही खोट ।
कतरा जिगरी कर गया ,हरता-फरता चोट ।।
हरता-फरता चोट ,उड़ाग्या मूंडा रा रंग ।
हाल-चाल बेहाल , कदी न कर ऐसो संग ।।
के ’वाणी’ कविराज, जद दारू-पाणी नेड़े ।
पी-पी के जो जाय , आय कुण हार्या केड़े ।।
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